बॉन्ड्स के बारे में मुख्य बातें जिनको जानना आपके लिए जरुरी है

जो कोई भी निवेश करना चाहता है उसे समझना चाहिए कि बॉन्ड का अर्थ क्या है और बॉन्ड्स कैसे काम करते हैं क्योंकि वे बातें एक निवेश पोर्टफोलियो के विविधीकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि बॉन्ड्स के मूल अभिलक्षण और विशेषताएं क्या हैं, इसके अतिरिक्त क्या जोखिम हैं। आगे पढ़ते रहिए, और आपको पता चल जाएगा कि कैसे बॉन्ड्स में निवेश करें और मुनाफ़ा (रिटर्न) प्राप्त करें।

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वित्त में बॉन्ड का क्या अर्थ है?

आइये इस बात से शुरू करते है की बॉन्ड्स क्या हैं। कई क्षेत्रों (अर्थशास्त्र, शेयर बाजार, वित्त, बैंकिंग) में बॉन्ड्स की परिभाषा का सारांश यह है: एक ऋण जोकि एक संस्था (जैसे एक कंपनी, नगर पालिका, या सरकार) द्वारा अपनी परियोजनाओं में पूँजी लगाने के लिए जारी किया गया और निवेशकों को बेचा गया। क्योंकि बॉन्ड एक ऋण है, अगर जारीकर्ता इसे नहीं चुका सकता तो यह डिफ़ॉल्ट (ऋण ना चुका पाने की स्थिति) भी हो सकता है।

बॉन्ड्स के प्रकार

बॉन्ड्स उनके जारीकर्ता और जोखिम के स्तर के हिसाब से अलग-अलग होते हैं। चार प्रकार के बॉन्ड्स हैं:

कॉर्पोरेट बॉन्ड्स

इस प्रकार का बॉन्ड कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है। यह उन के लिए बैंक से कर्ज लेने की अपेक्षा एक बेहतर विकल्प है। बैंक के कर्ज और बॉन्ड के बीच मुख्य अंतर क्या है? बॉन्ड्स पर ब्याज दर आमतौर पर कर्ज की अपेक्षा कम होता है।

नोट! कॉरपोरेट सबसे बॉन्ड सबसे ज्यादा जोखिम वाला बॉन्ड है।

नगरपालिका बॉन्ड्स

ये बॉन्ड्स नगरपालिकाओं और राज्यों द्वारा जारी किए जाते हैं। कुछ तरह के नगरपालिका बॉन्ड्स कर-मुक्त कूपन आय प्रदान करते हैं।

सरकारी (संप्रभु) बॉन्ड्स

भौतिक पूँजी

ये बॉन्ड्स, उदाहरण के लिए, यू.एस. ट्रेजरी द्वारा जारी किए जा सकते हैं। वे कई प्रकार की अवधि के लिए रहते हैं। पहला, एक वर्ष या उससे कम तक की अवधि वाले बॉन्ड्स को “बिल” कहा जाता है। दूसरा, 1 से दस साल तक की अवधि वाले बॉन्ड्स को “नोट्स” कहा जाता है। तीसरा, 10 से 30 साल या उससे अधिक समय तक की अवधि वाले बॉन्ड्स को “बॉन्ड” कहा जाता है। सरकारी राजकोष द्वारा जारी किए गए बॉन्ड्स की पूरी श्रेणी को सामूहिक रूप से “ट्रेजरी बॉन्ड” कहा जाता है। राष्ट्रीय सरकारों के बॉन्ड्स को संप्रभु ऋण के नाम से निर्दिष्ट किया जा सकता है। इसके अलावा, सरकारें कम मूल्य-वर्ग के बचत बॉन्ड और मुद्रास्फीति-संरक्षित बॉन्ड्स पेश कर सकती हैं।

नोट! सरकारी बॉन्ड्स को व्यापक रूप से जाने जाने वाले बॉन्ड्स के प्रकार में सबसे सुरक्षित माना जाता है।

एजेंसी बॉन्ड्स

वे सरकार से संबंधित संस्थाओं जैसे कि Freddie Mac द्वारा जारी किए गए बॉन्ड्स हैं।

नोट! सुरक्षित और असुरक्षित बॉन्ड्स भी हैं। पहले वाला एक प्रकार का ऋण निवेश है जो एक विशेष परिसंपत्ति द्वारा समर्थित होता है, अर्थात संपत्ति संपार्श्विक (कोलैटरल) के रूप में कार्य करती है। असुरक्षित बॉन्ड्स, जिन्हें ज़मानत बॉन्ड्स भी कहा जाता है, उपकरण, आय आदि द्वारा समर्थित नहीं हैं। इसके बजाय, जारीकर्ता उनका भुगतान करके छुड़ाने का वादा करता है।

बॉन्ड्स की मूल विशेषताएं

बॉन्ड खरीदते समय, आपको बॉन्ड्स की विशेषताओं (the features of bonds) और इन सिद्धांतों (these concepts) को जरूर समझना चाहिए:

  1. बॉन्ड के जारीकर्ता, कॉर्पोरेट, एजेंसी या सरकार होती है जो निवेशक से पूँजी उधार लेते हैं। ये जारीकर्ता उन जोखिमों का निर्धारण करते हैं जो निवेशकों के सामने आएंगे। ये संस्थाएं उधार ली गई राशि को नियमित अंतराल पर फिक्स्ड (निश्चित) कूपनों में चुकाएंगी। इसके अलावा, कुछ कारकों के आधार पर इन जारीकर्ताओं को क्रेडिट रेटिंग देने के लिए रेटिंग एजेंसियां हैं; एक जारीकर्ता की एक से ज़्यादा क्रेडिट रेटिंग हो सकती है।
  2. परिपक्वता (मैच्योरिटी) तिथि: यह वह तिथि है जिस पर जारीकर्ता ने उधार ली गई पूरी राशि का भुगतान कर देगा।
  3. कूपन वह फिक्स्ड राशि है जो उधार लेने वाला निवेशक को नियमित अंतराल में परिपक्वता तिथि तक भुगतान करता है।
  4. अंकित मूल्य (फेस वैल्यू): निवेशकों को जारीकर्ता से परिपक्वता तिथि पर मिलने वाली पूरी राशि। इसे मूलधन के रूप में भी जाना जाता है।
  5. बॉन्ड यील्ड वह रिटर्न है जो निवेशक को बॉन्ड में निवेश करने पर मिलेगा।
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बॉन्ड्स के जोखिम

बॉन्ड्स ऋण हैं, और आप यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि उनका वापिस भुगतान किया जाएगा। इसके अलावा, बॉन्ड्स के छह जोखिम हैं:

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  1. ब्याज दर जोखिम। ऐसा तब होता है जब मार्केट में मौजूदा बॉन्ड के बराबर कीमत वाला लेकिन ज्यादा ब्याज दर वाला कोई बॉन्ड दिखाई देता है, जो निवेशकों को मौजूदा बॉन्ड के बजाय इसमें निवेश करने के लिए प्रभावित करता है। यह पहले बॉन्ड की कीमत को घटने के लिए मजबूर करता है ताकि वह दूसरे नए बॉन्ड के ब्याज दर के बराबर हो सके (ब्याज दरों और बॉन्ड की कीमतों के बीच एक विपरीत संबंध है)। इस जोखिम को टालने के लिए, संशोधित अवधि परीक्षण है जो बताता है कि बॉन्ड की कीमत में ब्याज दर के घटने या बढ़नेपर बदलाव होने की कितनी संभावना है।
  2. डिफ़ॉल्ट/क्रेडिट जोखिम। यह तब होता है जब जारीकर्ता आर्थिक अस्थिरता के कारण अनुबंधित राशि का भुगतान करने में शायद सक्षम नहीं हो पाए। इस प्रकार का जोखिम कॉरपोरेट्स के साथ होता है जहां कूपन दरें सरकार की अपेक्षा अधिक होती हैं। इसलिए सरकारी बॉन्ड्स कॉरपोरेट बॉन्ड्स की तुलना में ज्यादा सुरक्षित होते हैं। बॉन्डधारकों को Moody and Poor जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई निवेश ग्रेड रेटिंग को देखने की सलाह दी जाती है।
  3. मुद्रास्फीति जोखिम। बाजार की कीमतें बढ़ने पर कूपन तो स्थिर रहेगा और इस वजह से आप उस कूपन के साथ पहले से कम सामान खरीद पाएंगे।
  4. कॉल जोखिम और पुनर्निवेश। निगम और नगर पालिकाएं गिरती हुई ब्याज दरों के कारण कभी-कभी अपने बॉन्ड्स वापस ले लेती हैं, जिससे कि वे नए बॉन्ड्स खरीद सकें। इसलिए, बॉन्डधारकों को अपनी पूँजी को कहीं और पुनर्निवेश करना होगा। यदि आप एक कॉल करने योग्य बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं, तो इस जोखिम से बचने के लिए आप यह पूछताछ करना सुनिश्चित कर लें कि कितने समय में इस की कॉल करने की संभावना है।
  5. तरलता (लिक्विडिटी) जोखिम। बाजार में बॉन्ड्स की ट्रेडिंग कोई आम बात नहीं है। बाजार में बहुत से खरीदार नहीं हैं, जिसकी वजह से कीमतें बहुत अस्थिर हो सकती हैं, और बॉन्डधारक को बॉन्ड्स के बदले में कम कीमत मिलने का खतरा है।
  6. बाजार जोखिम। यदि कोई बॉन्ड अल्प संख्या में है या लोकप्रिय है, तो इसकी कीमत बढ़ जाएगी, जिसका अर्थ है कि ब्याज दरें नीचे जाएंगी, जोकि बॉन्डधारकों के लिए हानिकारक है।

बॉन्ड रेटिंग

बॉन्ड्स को जानी-मानी एजेंसियों जैसे कि Standard & Poor’s Ratings Services रेटिंग सर्विसेज या Moody’s Investors Services सर्विसेज द्वारा रेट किया जाता है। एजेंसी जो सबसे अच्छी रेटिंग दे सकती है वह है AAA, और सबसे कम है C या D। अच्छी रेटिंग वाले बॉन्ड्स को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि ये संभावना कम होती है कि वह बॉन्ड डिफ़ॉल्ट करेगा। जो कम रेटिंग वाले होते हैं, उनको जोखिम भरा माना जाता है, क्योंकि ज्यादा संभावना है कि बॉन्ड डिफ़ॉल्ट हो जाएगा। इस प्रकार के बॉन्ड को “जंक बॉन्ड्स” या “हाई यील्ड” कहा जाता है।

सरकार के कम ब्याज दरों वाले बॉन्ड्स के पास उच्च रेटिंग होती है, इसलिए उन्हें सुरक्षित माना जाता है। वहीं, कंपनियों की क्रेडिट रेटिंग कम होती है क्योंकि वहाँ ब्याज दर या फंड की मूल राशि का भुगतान ना करने का एक बड़ा जोखिम होता है।

बॉन्ड डिविडेंड (लाभांश) यील्ड 

बॉन्ड यील्ड वह है जो निवेशक को बॉन्ड खरीदते समय ब्याज में मिलता है। जब ब्याज दर में बदलाव होता है तो बॉन्ड की कीमत बदल सकती है। यदि कीमत एक प्रीमियम पर बढ़ती है, तो ब्याज दर कम हो जाता है, जिसका अर्थ है कि यील्ड कम हो जाती है। यदि कीमत डिस्काउंट पर नीचे जाती है, तो ब्याज दर बढ़ जाता है, जिसका अर्थ है कि यील्ड बढ़ जाती है।

बॉन्ड यील्ड का आकलन करने के लिए, आपको जारीकर्ता द्वारा वार्षिक भुगतान किए जाने वाले फिक्स्ड कूपन रेट को अंकित मूल्य/बॉन्ड मूल्य से विभाजित करना होगा।

यील्ड = फिक्स्ड कूपन/बॉन्ड मूल्य

मान लेते हैं कि आपने 5000$ का एक बॉन्ड खरीदा है, और आपको वार्षिक आधार पर 200$ का भुगतान किया जाता है:

यील्ड= फिक्स्ड कूपन/बॉन्ड मूल्य= 200/5000= 4%

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परन्तु, बॉन्ड की कीमतें अस्थिर हैं। मान लेते हैं कि बॉन्ड की कीमत बढ़कर 5500 डॉलर हो गई। फिक्स्ड कूपन अभी भी स्थिर रहेगा, इसलिए यील्ड की गणना करते समय, यह नीचे जाएगा:

यील्ड= फिक्स्ड कूपन/बॉन्ड मूल्य= 200/5500= 3.64%

दूसरी ओर, जब बॉन्ड की कीमत घटकर 4300 डॉलर हो जाती है, कूपन तब भी फिक्स्ड होगा, और यील्ड बढ़ जाएगी:

यील्ड= फिक्स्ड कूपन/बॉन्ड मूल्य= 200/4300= 4.65%

सामान्य

हम आशा करते हैं कि इस लेख ने वह सब समझा दिया है जो आपको बॉन्ड्स में निवेश करने से पहले जानने की जरूरत है, और इन सवालों का कि बॉन्ड क्या है और यह कैसे काम करता है जवाब दिया है। जब शेयर बाजार अस्थिर होता है, तो बॉन्ड्स आपके निवेश को संतुलित करने में सहायता कर सकते हैं। एक निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए बॉन्ड्स के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता। पर फिर भी आपको जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए और जारीकर्ता की वित्तीय स्थिरता, बाजार में खरीदारों की संख्या और क्या जारीकर्ता बॉन्ड को वापस लेगा पर विचार करना चाहिए।

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